कहा जाता है कि जब इंसानियत सबसे ऊपर हो तो कोई भी धर्म या मजहब मायने नहीं रखता और इस बात को बखूबी इन मुस्लिम युवाओं ने साबित किया. जब 90 साल की बुजुर्ग हिंदू महिला से खुद के परिवार वालों ने मुंह मोड़ लिया तब मुस्लिम युवाओं ने उन्हें कंधा दिया और पूरे विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया. उस अंतिम संस्कार में बुजुर्ग महिला का कोई परिवार वाला शामिल नहीं हुआ था.
मुस्लिम युवाओं ने उठाया सारा जिम्मा
90 साल की इस बुजुर्ग महिला के अंतिम संस्कार की कहानी जिसने भी सुनी उसकी आंखें पूरी तरह से नम हो गई. लोगों ने इस सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश की है जो आज के समाज में शायद ही कहीं देखने को मिलता है. दरअसल ग्वालियर की रेलवे कॉलोनी की दरगाह इलाके में रहने वाली रामदेही माहौर जो कि 90 वर्ष की थी वह वहां पर अकेले रहती थी. उनका कोई भी बेटा नहीं था, एक बेटी है जो कि दिल्ली में रहती है. मां की मौत की खबर सुनकर बेटी समय पर पहुंच गई लेकिन बाहर से आते- आते वह अकेले सारे इंतजाम कैसे करती. इस बात से वह काफी परेशान थी. सबसे बड़ा सवाल था कि उनकी मां की अर्थी को कंधा कौन देगा और अंतिम संस्कार की सारी रस्में कौन निभाएगा क्योंकि उनके सारे रिश्तेदारों ने अपनी जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया था.
बेटी ने दी मुखाग्नि
जब अपने रिश्तेदार इस बुजुर्ग महिला को कंधा देने से पीछे हट गए थे तब रामदेही को अपनी मां की तरह प्रेम करने वाले उस इलाके के मुस्लिम युवा आगे आए और उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे भाई और दोस्तों के साथ मिलकर उनकी अर्थी की तैयारी की और फिर उन्हें कंधा देते हुए बैंड बाजों के साथ शमशान तक पहुंचाया जहां मुस्लिम युवाओं द्वारा अपने हाथों से उनकी चिता तैयार की गई और फिर उनकी बेटी शीला ने उनकी देह को मुखाग्नि दी. आपको बता दें कि जिस इलाके में रामदेही रहती थी वहां हिंदू और मुस्लिम परिवार के लोग उनकी देखभाल करते थे और उन्हें दोनों वक्त का खाना देते थे. उनके जितने भी छोटे-मोटे काम होते थे वह आस-पास के लोग कर देते थे. यही वजह है कि जब अंतिम समय में रिश्तेदारों ने उनसे मुंह मोड़ लिया तब उनके आसपास के लोग ही काम आए.