माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का जिस तरह फिल्मी अंदाज में मर्डर किया गया, उसकी शायद कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. सांसद और चार बार विधायक रहे माफिया अतीक अहमद पर 44 साल पहले सबसे पहला मुकदमा दर्ज हुआ था तब से लेकर आज तक उनके ऊपर सैकड़ों आपराधिक मामले दर्ज हुए लेकिन पहली बार उमेश पाल अपहरण कांड में उन्हें दोषी ठहराया गया और यहीं से क्रिमिनल के बुरे दिन शुरू हो गए. अतीक ने क्राइम के दम पर अपनी पहचान बनाई और उसी के बलबूते पर राजनीति में एंट्री भी ले ली. 28 साल की उम्र में विधायक बना और ताकत दुगनी हो गई. जो अतिक के सामने सामने आया, उसका अंत हुआ.
सारे हाईप्रोफाइल हत्याकांड में शामिल है नाम
जितने भी हाई प्रोफाइल हत्याकांड हुए उसमें से आधे से ज्यादा में अतीत का ही नाम आता रहा. एक के बाद एक सौ से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए लेकिन किसी भी मुकदमे में सजा नहीं हुंई. उमेश पाल अपहरण कांड में पहली बार अतीक को सजा सुनाई गई. आपको बता दें कि अतीक और अशरफ जिनकी अभी हत्या की गई है उन दोनों का ही कई बड़े-बड़े मामले में नाम दर्ज था और दोनों आधे से ज्यादा मामले में एक दूसरे के साथ रहा करते थे. दरअसल अतीक अहमद को इसी साल 29 मार्च को उमेश पाल अपहरण कांड में उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. हालांकि अतीक के भाई अशरफ समेत सात जीवित आरोपी मंगलवार को दोषमुक्त करार दिए गए थे. तब से अब तक उसके ऊपर 100 से अधिक मामले दर्ज हुए लेकिन पहली बार साल 1979 में दर्ज हुए मुकदमे में उसे दोषी ठहराया गया था.
आपराधिक मामलों से बढ़ा राजनीतिक विधवा
जुर्म की दुनिया में देखा जाए तो अतीक का बहुत बड़ा नाम है. रंगदारी, अपहरण, लूट, हत्या यह सभी उसके लिए एक छोटी सी चीज है और इन्हीं मुकदमों के साथ-साथ उसका राजनीतिक रूतबा धीरे-धीरे बढ़ता चला गया. वर्तमान में ही देखा जाए तो अदालत में उनके ऊपर 50 मुकाबले चल रहे हैं गुजरात की साबरमती जेल से प्रयागराज ले जाते समय अतीक अहमद का काफिला झांसी में भी रुका था यहां उसने अपनी हत्या की आशंका जताई थी जो शनिवार की रात आखिरकार सच
बड़े अधिकारी ने दी धमकी
साबरमती जेल से प्रयागराज ले जाते समय एक महीने के दरमियान अतीक अहमद तीन बार झांसी से होकर गुजरा. प्रयागराज में हत्या के बाद यह साफ हो गया कि अशरफ को अपने अंत का अंदाजा पहले से था जहां बरेली लौटते ही जेल गेट पर पत्रकार से 2 सप्ताह बाद अपनी मौत का अंदेशा जता दिया था. 2 दिन बाद आई उसकी बहन आशा ने भी इस बात को आगे बढ़ाया था. 28 मार्च को प्रयागराज में पेशी के बाद अशरफ को बरेली ले जाया गया जहां पर जेल गेट पर उस ने पत्रकारों से कहा था कि एक बड़े अधिकारी से उसे धमकी दी है कि 2 सप्ताह बाद जेल से निकालकर निपटा दिए जाओगे.
जो भी सामने आया उसे अतीक ने मार डाला
यह साल 2007 के चुनाव की बात है जब पश्चिमी सीट से अतीक के भाई अशरफ को राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने हरा दिया था. इसके बाद अतीक पर शिकंजा कसना शुरू हुआ. हालात बदले तो उमेश ने अपने अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया. इस मामले की उमेश सालों पैरवी करते रहे. उमेश पाल ने अपने अपहरण के मामले को लगभग अंजाम तक पहुंचा दिया लेकिन फैसले की एक महीने पहले ही उनकी हत्या कर दी गई.